बसंत पंचमी (कहानी)प्रतियोगिता हेतु -14-Feb-2024
वसंत पंचमी
माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को वसंत पंचमी या ऋषि पंचमी का त्योहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। माघ महीना हिंदुओं के लिए बड़ा ही पावन महीना है इस महीने को दान, स्नान पुण्य कर्म से जोड़कर देखा जाता है।
वसंत उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक है, जो फरवरी मार्च और अप्रैल के मध्य अपना सौंदर्य बिखेरती है। ऐसा माना जाता है कि माघ महीने की शुक्ल पक्ष की पंचमी से वसंत ऋतु आरंभ होता है। ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन और चैत्र का महीना वसंत ऋतु का महीना होता है
**अत्यंत पुण्यदाई और फलदाई महीने में पड़ता है वसंत पंचमी-
वसंत पंचमी का त्योहार माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। माघ मास को यज्ञ, दान तथा तप आदि की दृष्टि से बड़ा ही पुण्य फलदायी माना जाता है। वसंत के आगमन पर शीत से जड़त्व को प्राप्त प्रकृति पुन: चेतनता को प्राप्त होने लगती है। भगवान श्रीकृष्ण गीता जी में कहते हैं कि ‘ऋतुनां कुसुमाकर:’। ऋतुओं में वसंत मैं हूं। वसंत को ऋतुराज भी कहा जाता है।
**वसंत पंचमी का महत्व
इस तिथि का धार्मिक तथा ऐतिहासिक दोनों ही दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। तो पहले हम बात करते हैं धार्मिक महत्व की।
**वसंत पंचमी का धार्मिक महत्व-
1- वसंत पंचमी के दिन मांँ सरस्वती का प्राकट्य-
ऐसा कहा जाता है कि भगवान विष्णु की आज्ञा से महर्षि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना किया। किंतु वो अपनी रचना से संतुष्ट नहीं हुए क्योंकि उन्होंने जिस सृष्टि की रचना किया था उसमें चारों तरफ़ निराशा, अवसाद, उदासी छाई हुई थी उन्हें लगा शायद उनसे सृष्टि का निर्माण करने में कोई कमी रह गई। जिसके कारण चारो ओर मौन छाया हुआ है तब वो भगवान विष्णु के आज्ञा से कमंडल से जल लेकर छिड़के जिससे एक अद्वितीय चतुर्भुजी स्त्री पैदा हुईं जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरे हाथ में मुद्रा था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा जी ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुर नाद किया , संसार के समस्त जीव-जंतुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया,शीतल मंद सुगंधित पवन चलने लगी। तब ब्रह्माजी ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। जिन्हें बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणा वादिनी, वाग्देवी सहित अनेक नामों से पुकारा जाता है। ये विद्या और बुद्धि की प्रदाता हैं, संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी कहलाईं।
चूँकि इनका प्राकट्य वसंत पंचमी को हुआ,अतः वसंत पंचमी को हम लोग सरस्वती पूजा के रूप में मनाते हैं।
** वसंत ही ऋतुराज
बसंत पंचमी का त्यौहार माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को मनाया जाता है। माघ मास को यज्ञ, दान तथा तप आदि की दृष्टि से बड़ा ही पुण्य फलदायी माना जाता है। बसंत के आगमन पर शीत से जड़त्व को प्राप्त प्रकृति पुन: चेतनता को प्राप्त होने लगती है। भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं कि ‘ऋतुनां कुसुमाकर:’। ऋतुओं में वसंत मैं हूं। बसंत को ऋतुराज भी कहा जाता है।
चूँकि माता सरस्वती का प्राकट्य वसंत पंचमी को हुआ था अतः वसंत पंचमी को हम लोग सरस्वती पूजा के रूप में मनाते हैं।
** वसंत पंचमी के दिन ही मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार हुआ -
वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव ह्रदय में प्रेम और आकर्षण का संचार किया था। इस दिन कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दांपत्य जीवन को सुखमय बनाना है।
** माता सरस्वती के साथ कामदेव और रति का भी पूजन
शास्त्रों में ऋतुराज वसंत को सभी ऋतुओं का राजा बताया गया है। इस मौसम में ऋतु परिवर्तन हर ओर दिखाई देने लगता है। मान्यता है कि वसंत पंचमी के दिन माता सरस्वती के साथ कामदेव और उनकी प्रिया रति की भी पूजा की जाती है। माघ, शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि पर ही देवी सरस्वती की कृपा से संसार के सभी जीव-जंतुओं को वाणी के संग बुद्धि और विद्या मिली थी। कला, संगीत, साहित्य के क्षेत्र से जुड़े लोग इस दिन विशेषकर मांँ सरस्वती की पूजा करते हैं।
** श्री कृष्ण ने किया सबसे पहले मांँ सरस्वती का पूजन
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता सरस्वती ने जब श्री कृष्ण को देखा तो वो उनके रूप पर मोहित हो गईं और उन्हें पति रूप में पाने की लालसा व्यक्त कीं। भगवान कृष्ण को जब इस बात का पता चला तब उन्होंने बताया कि वो एकमात्र राधा जी की तरफ़ समर्पित हैं। परंतु किसी भी क़ीमत पर माता सरस्वती को रूष्ट नहीं करना चाहते थे। अतः उन्होंने मांँ शारदे को वरदान दिया कि प्रत्येक विद्या का आकांक्षी माघ मास की शुक्ल पंचमी को आप पूजन करेगा। यह वरदान देने के बाद स्वयं श्रीकृष्ण ने पहले देवी की पूजा की। सृष्टि निर्माण के लिए मूल प्रकृति के पाँच रूपों में से सरस्वती एक है, जो वाणी, बुद्घि, विद्या और ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी है।
**कामदेव और रति की पूजा का महत्व
इस दिन कामदेव और रति के पूजन का उद्देश्य दांपत्य जीवन को सुखमय बनाना है। माना जाता है कि ऐसा करने से जीवन में पारिवारिक प्रेम, स्नेह, प्रसन्नता आदि में वृद्धि होती है। शास्त्रों में कामदेव को प्रेम का देवता और ऋतुराज वसंत का मित्र कहा गया है। कामदेव व्यक्ति के जीवन में प्रेम का संचार करते हैं और देवी रति श्रृंगार का।
** वसंत पंचमी के दिन कामदेव और रति धरती पर भ्रमण करने आते हैं-
यदि हम पुराणों की मानें तो बसंत पंचमी वह पावन तिथि है जिस दिन रति और कामदेव पृथ्वी पर भ्रमण करने हेतु आते हैं। उनके आने के साथ ही धरती पर बसंत ऋतु का आगमन तथा मनुष्यों के मन में उमंग, प्रकृति में हरियाली, फूलों में श्रृंगार, वृक्षों में नव कोपल अवतरित होता है। वसंत पंचमी पर सृष्टि में प्राणियों के बीच प्रेम भावना बनी रहे, इसलिए वसंत पंचमी के दिन कामदेव और रति की पूजा अवश्य की जाती है। शास्त्रों के अनुसार प्रेम के स्वामी कामदेव और उनकी पत्नी के नृत्य से ही पशु, पक्षियों और मनुष्यों में प्रेम और काम के भाव जागृत होते हैं। कामदेव की कृपा से ही वैवाहिक संबंधों में मधुरता आती है। क्योंकि देवी रति को प्रेम, सौंदर्य, आकर्षण, प्रतिभा और कामना की देवी माना जाता है। जो भी उनकी वंदना करता है उसके अंदर देवी इन गुणों का संचार करती हैं।
***और धार्मिक महत्व के पश्चात अब हम लोग आते हैं ऐतिहासिक महत्व पर।
1- बसंत पंचमी के दिन अमर शहीद राज नारायण का जन्म
9 दिसंबर, 1944 को लखनऊ में ‘इन्कलाब जिंदाबाद’ का उद्घोष करते हुए शहादत का वरण करने वाले बहादुर क्रांतिकारी,अमर शहीद राजनारायण मिश्र का जन्म लखीमपुर खीरी जिले के कठिना नदी के तटवर्ती गाँव भीखमपुर में 1919 की बसंत पंचमी को बलदेवप्रसाद मिश्र तथा तुलसी देवी के यहाँ हुआ था। जब ये 9 साल के हुए तभी उनकी माता इन्हें छोड़कर स्वर्ग सिधार गईं और इनका पालन-पोषण उनकी बहन रमादेवी ने किया। इन्होंने एक गुलाम भारत में होश संँभाला जिसका इन्हें बहुत मलाल था। ये भारत को आज़ाद कराने के लिए अनेकानेक बार जेल गए।
एक बार की घटना है 14 अगस्त 1942 को अपने दो साथियों के साथ महमूदाबाद के जिलेदार का ये बंदूक छीनने की योजना बनाये। जैसे ही राज नारायण उसकी तरफ़ बढ़े उसने बंदूक की नली उनके एक मित्र की तरफ़ घुमा दिया गोरे के धृष्टता को देखकर राज नारायण के ख़ून में उबाल आया और उन्होंने उसके ऊपर गोली दाग दी उसके पश्चात वो वहांँ से फरार हो गए।
वो ग़रीब परिवार से थे अतः उनके पास पैसे नहीं थे नौकरी के लिए भटकते रहे अंततः वो अपने एक मित्र के यहांँ गए जिसकी वज़ह से अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए। पकड़े जाने पर अंग्रेज़ों ने अनेकानेक तरह की अमानुषिक प्रताड़ना दिए।उनके पीठ पर बर्फ़ की सिली बांँध दिये।
अंततः राज नारायण ने अपने क्रांतिकारी गतिविधियों को स्वीकार कर लिया जिसके फलस्वरुप उनके ऊपर मुकदमा चला और 27 जून 1944 को उन्हें फांँसी की सज़ा सुनाई गई। तथा 9 दिसंबर 1944 को प्रातः 4:00 बजे अंग्रेज़ों द्वारा आख़िरी फाँसी उन्हें दी गई।
2- वसंत पंचमी के दिन ही पृथ्वीराज चौहान तथा चंदवरदाई ने दिया आत्म बलिदान-
बसंत पंचमी का दिन पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। यह भारत के इतिहास का वह गौरवपूर्ण नाम है जो दिल्ली की गद्दी के आख़िरी हिन्दू सम्राट थे। ये जितने परमवीर थे उतने ही दयालु और क्षमाशील भी थे। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद गोरी को 16 बार युद्ध में पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया। लेकिन जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए तो मोहम्मद गोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा।
वह उन्हें घोड़े में बाँधकर घसीटता हुआ काबूल ले गया इस बात की ख़बर जब उनके मित्र तथा राज दरबारी कवि चंदवरदाई को चली तब वो गुप्त मार्ग से होते हुए वहांँ पहुंँचे और मोहम्मद गोरी को सलाह दिए कि पृथ्वीराज चौहान की हत्या करने से पहले उनके शब्द भेदी वाण की कला देख लीजिए। मोहम्मद गोरी अपने विजय में अंधा था। वह पृथ्वीराज चौहान के शब्द भेदी वाण की कला को देखने के लिए एक उच्च सिंहासन पर बैठ गया। पृथ्वीराज चौहान के हाथ में तीर और धनुष दे दिया गया। तभी चंदवरदाई ने कहा-
चार बाँस चौबीस गज अंगुल अष्ट प्रमाण। ता ऊपर सुल्तान है मत चूको चौहान।
इतना कहने के पश्चात उन्होंने गोरी को घंटा बजाकर पृथ्वीराज को तीर चलाने की अनुमति प्रदान करने को कहा। गोरी ने जैसे ही घंटा बजाया पृथ्वीराज चौहान ने तीर चलाया और वह तीर मोहम्मद गौरी की छाती का भेदन करता हुआ निकल गया। उसके पश्चात चंदवरदाई और पृथ्वीराज चौहान दोनों ने वहीं पर आत्म बलिदान दिया। इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान एक हारे हुए विजेता घोषित हुए।
3- धर्म की रक्षा हेतु वीर हकीकत राय ने मृत्यु का वरण किया-
एक बार लाहौर निवासी वीर हकीकत राय अपने मित्रों के साथ खेल रहे थे। मुल्लाजी किसी काम से बाहर गए थे, तभी उनके मुसलमान मित्रों ने दुर्गा मांँ का मज़ाक़ उड़ाया तब हकीकत राय ने कहा यदि मैं तुम्हारे फातिमा बीबी का मज़ाक़ उड़ाऊँ तो तुम्हें कैसा लगेगा? इस बात को मौलाना के आने पर बच्चों ने हकीकत राय की शिकायत उनसे करते हुए कहा कि इसने हमारे फातिमा बीवी को गाली दिया। यह बात मुगल शासक तक पहुंँची फलस्वरुप यह निर्णय लिया गया की वीर हकीकत राय इस्लाम को स्वीकार करें। वीर हकीकत राय इस्लाम बनने से इनकार कर दिए जिस वज़ह से उन्हें मात्र 14 वर्ष की आयु में मौत के घाट उतार दिया गया। कहा जाता है जब जल्लाद उनका मस्तक काटा तो उनका मस्तक ज़मीन पर न गिरकर आकाश मार्ग से सीधा स्वर्ग लोक को चला गया। जिस दिन वीर हकीकत राय की हत्या की गई उस दिन बसंत पंचमी का ही दिन था।
लाहौर जब पाकिस्तान का हिस्सा बन गया है। पाकिस्तान जो कि इस्लामिक देश है किंतु वसंत पंचमी के दिन वहाँ पर वीर हकीकत राय की याद में वसंत पंचमी मनाया जाता है।
4- बसंत पंचमी परम भक्त शबरी की याद दिलाता है-
वर्तमान गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला दंडकारण्य वह स्थान है जहांँ शबरी मांँ का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही प्रभु श्री रामचंद्र जी वहांँ आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रद्धा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहांँ शबरी माता का मंदिर भी है। मोरारी बापू की प्रेरणा से वहांँ 10 से 12 फरवरी तक शबरी कुंभ का आयोजन भी होता है।
5- गुरु राम सिंह कूका और वसंत पंचमी-
बाबा/गुरु रामसिंह कूका जिनका जन्म 3 फरवरी, 1826 को लुधियाना में वसंत पंचमी के दिन हुआ। ये भारत की आज़ादी के प्रथम प्रणेता, कूका विद्रोह, असहयोग आन्दोलन के मुखिया, सिखों के नामधारी पंथ के संस्थापक, तथा महान समाज-सुधारक थे। गुरु रामसिंह गोरक्षा, स्वदेशी, नारी उद्धार, अंतरजातीय विवाह, सामूहिक विवाह आदि पर बहुत जोर देते थे। वो सर्वप्रथम अंग्रेज़ी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतंत्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलाये थे । 1872 में भैणी मेले से आते समय उनके एक शिष्य को मुसलमानों ने घेर लिया। उन्होंने उसे पीटा और गोवध कर उसके मुंँह में गो मांँस ठूंँस दिया। यह सुनकर गुरु रामसिंह के शिष्य भड़क गये। उन्होंने उस गांँव पर हमला बोल दिया पर अंग्रेज़ों का साथ मिलने की वज़ह से इस संघर्ष में अनेक कूका वीर शहीद हुए और 68 पकड़ लिये गये। इनमें से 50 को 17 जनवरी 1872 को मलेरकोटला में तोप के सामने खड़ाकर उड़ा दिया गया। शेष 18 को अगले दिन फांँसी दी गयी। दो दिन बाद गुरू रामसिंह को भी पकड़कर बर्मा की मांडले जेल में भेज दिया गया। 14 साल तक वहांँ कठोर अत्याचार सहकर 1885 ई. में उन्होंने अपना शरीर त्याग दिया।
6- वसंत पंचमी और छायावाद के स्तंभ कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला-
वसंत पंचमी (28.02.1899) हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का भी जन्मदिवस है।
**अत्यंत पावन दिवस है वसंत पंचमी-
वसंत पंचमी का दिन सभी प्रकार के शुभ कार्यों के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। पुराणों में भी वसंत पंचमी को मुख्य रूप से नई शिक्षा और गृह प्रवेश के लिए बहुत ही शुभ माना गया है। वसंत पंचमी को शुभ मानने के अनेकानेक कारण हैं। यह त्योहार आमतौर पर माघ महीने में आता है। माघ मास का विशेष धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व है। इस महीने तीर्थ क्षेत्र में स्नान का विशेष महत्व माना गया है।
साधना शाही, वाराणसी
Shnaya
17-Feb-2024 10:45 PM
Nice one
Reply
Gunjan Kamal
15-Feb-2024 09:15 PM
महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने
Reply
Mohammed urooj khan
15-Feb-2024 12:07 PM
👌🏾👌🏾👌🏾👌🏾
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